शिमला IGMC अस्पताल में हुई मारपीट की घटना को लेकर बड़ी कार्रवाई सामने आई है।चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान निदेशालय, हिमाचल प्रदेश ने जांच पूरी होने के बाद सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर राघव निरुला की सेवाएं समाप्त कर दी गई है।
शिमला IGMC अस्पताल में हुई मारपीट की घटना को लेकर बड़ी कार्रवाई सामने आई है।
चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान निदेशालय, हिमाचल प्रदेश ने जांच पूरी होने के बाद सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर राघव निरुला की सेवाएं समाप्त कर दी गई है।
आदेश जारी
शिमला: इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (IGMC) शिमला में मरीज के साथ हुई मारपीट के मामले में सरकार ने कड़ा कदम उठाते हुए आरोपी डॉक्टर डॉ. राघव निरुला की सेवाएं समाप्त कर दी हैं। यह आदेश चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान निदेशालय (DMER), हिमाचल प्रदेश द्वारा जारी किया गया है।
आदेश के अनुसार, IGMC शिमला की अनुशासनात्मक जांच समिति की प्रारंभिक रिपोर्ट में यह सामने आया कि 36 वर्षीय मरीज अर्जुन और पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के सीनियर रेजिडेंट डॉ. राघव निरुला के बीच अस्पताल परिसर में झड़प हुई थी। मामले की गंभीरता को देखते हुए डॉक्टर को पहले 22 दिसंबर 2025 को निलंबित किया गया था।


जांच के दौरान मरीज के परिजनों द्वारा डॉ. राघव निरुला के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करवाई गई, जो फिलहाल पुलिस जांच के अधीन है। वहीं, घटना से जुड़ा वीडियो क्लिप भी जांच का अहम आधार बना।सरकार द्वारा गठित जांच समिति ने सभी पहलुओं की पड़ताल के बाद अपनी रिपोर्ट में पाया कि इस घटना के लिए मरीज और डॉक्टर—दोनों ही जिम्मेदार हैं। हालांकि, रिपोर्ट में डॉ. राघव निरुला को एक लोक सेवक के रूप में कदाचार, दुर्व्यवहार और रेजिडेंट डॉक्टर पॉलिसी-2025 के उल्लंघन का दोषी ठहराया गया
इन तथ्यों के आधार पर निदेशक, चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान, हिमाचल प्रदेश ने अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए रेजिडेंट डॉक्टर पॉलिसी-2025 की धारा-9 के तहत डॉ. राघव निरुला की सीनियर रेजिडेंट पद से सेवाएं तत्काल प्रभाव से समाप्त करने के आदेश जारी किए हैं।
इस कार्रवाई के बाद IGMC शिमला प्रकरण में सरकार की सख्त मंशा साफ दिखाई दे रही है। प्रशासन का कहना है कि अस्पताल जैसे संवेदनशील संस्थानों में किसी भी प्रकार की हिंसा, अनुशासनहीनता और मरीजों के साथ दुर्व्यवहार को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
IGMC शिमला प्रकरण में डॉक्टर की सेवा समाप्ति यह दर्शाती है कि सरकार और प्रशासन अब ऐसे मामलों में केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि ठोस और कड़ी कार्रवाई के पक्ष में हैं। यह फैसला स्वास्थ्य संस्थानों में अनुशासन, जवाबदेही और मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। साथ ही, यह मामला भविष्य के लिए एक स्पष्ट चेतावनी भी है कि किसी भी स्तर पर हिंसा और दुर्व्यवहार को स्वीकार नहीं किया जाएगा
